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झगड़े और फ़साद से बचें मुसन्निफ़- मौलाना ततहीर अहमद रज़वी बरेलवी अहले इल्म व फ़ज़्ल मसाजिद के इमाम और समझदार लोगो से मैं गुज़ारिश करूँगा कि वो ताज़ियादारों से लड़ाई झगड़े न करें अख़लाक़ व मुहब्बत के साथ समझाने की कोशिश करें। मान जाएं तो ठीक है वरना ख़ुद को गलत कामों से बचा लेना और उनमें शिरक़त न करना भी काफी है, क्योंकि ताज़ियादार अक्सर बड़े झगड़ालू होते हैं, कुछ लोगो का ये ताज़ियादारी खाने कमाने का धंदा भी बन गई है, तो वो किसी सूरत मानने को तैयार होंगे ही नहीं। आप खुद को बचा लें खुदाए तआला आप की पकड़ नही फरमाएगा, हाँ बाअसर लोगों को अपने असर व रसूख़ का इस्तेमाल करना चाहिए। (मुहर्रम मे क्या जाइज़ ?क्या नाजाइज़ ? पेज 47)
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काले और हरे कपड़े पहनना या हरी टोपी ओढ़ना मुसन्निफ़ - मौलाना ततहीर अहमद रज़वी बरेलवी  मुह़र्रम में यह हरे काले कपड़े ग़म और सोग मनाने के लिए पहने जाते हैं और सोग इस्लाम में ह़राम है उसके ए़लावा सोग की और बातें भी कुछ राइज हैं,जैसे मुह़र्रम में शुरू के दस दिन कपड़े न बदलना,दिन में रोटी न पकाना,झाड़ू न लगाना,माहे मह़र्रम में ब्याह शादी को बुरा समझना सब फ़ुफ़ुज़ूल बातें और जिहालत व राफ़्ज़ियत की पैदावार खुराफ़ातें हैं। अ़ालाहज़रत अलैहिर्रहमा फ़रमाते हैं :  यूँ ही अशरा-ए- मुह़र्रम के सब्ज़(हरे)रंगे हुये कपड़े भी नाजाइज़ हैं यह भी सोग की ग़र्ज से हैं...अशरा मुह़र्रम में तीन रंगों से बचें स्याह(काला)सब्ज़(हरा)सुर्ख । (फ़तावा रज़विया 24,स़:496)  बाज़ जगह अ़शरा मुह़र्रम में सवारियाँ निकाली जाती हैं और उनके साथ त़रह़ त़रह़ के तमाशे और ड्रामे होते हैं वह भी नाजाइज़ व गुनाह हैं। खुदाये  तअ़ाला मुसलमानों को स़ह़ी मअ़ना में इस्लाम को समझने और उस पर चलने की तौफ़ीक़ अ़त़ा फ़रमाये। भाइयों! यह दिल है उसको जिस में लगाओगे यह लग जायेगा,गानों,बाजों,मेलों,तमाशों,खुराफ़ातों मे...
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चेहल्लुम का बयान मुसन्निफ़- मौलाना ततहीर अहमद रज़वी बरेलवी सफ़र के महीने की 20 तारीख़ को हज़रत सय्येदिना इमाम हुसैन रदियल्लाहु तआला अन्हु के चेहल्लुम ने नाम पर भी ख़ूब मेले ठेले और तमाशे लगाए जाते हैं। ताजिये बना कर बाजो ताशों के साथ घुमाये जाते है। इस सिलसिले में पहली बात तो ये है कि चेहल्लुम या चालीसवां उन नियाज़ व फ़ातिहा व ईसाले सवाब को कहते हैं जो इंतेक़ाल के चालीसवें दिन या कुछ आगे पीछे किया जाए। लेकिन जिस की शहादत को 1350 सौ साल हो चुकें हों उसका चेहल्लुम अब होना समझ में नहीं आता, उर्स व बरसी तो हर साल होते हैं, लेकिन चालीसवां या चेहल्लुम हरसाल होना तअज़्जुब की बात है, फिर भी चूंकि नियाज़ व फ़ातिहा वगैरह जाइज़ काम हर दिन जाइज़ व हलाल है, 20 सफ़र को भी किए जाएं तो गुनाह नहीं बल्कि सवाब है, लेकिन चेहल्लुम के नाम पर जो भी खुराफातें और तमाशे होते है उनसे इस्लाम मज़हब का दूर का भी वास्ता नहीं है। बात दर असल ये है कि जब एक मेले और तमाशे से पेट नहीं भरा तो मौज़ व मस्ती और चन्दे करने के लिए एक दिन और बढ़ा लिया, क्योंकि खेल तमाशे ऐसी चीज़ें हैं कि तमाशा पसन्द लोग चाहते हैं कि ये तो रोज़ाना हों तो ...
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इमाम क़ासिम की मेहन्दी मुसन्निफ़- मौलाना ततहीर अहमद रज़वी बरेलवी हज़रत इमाम क़ासिम, इमाम हुसैन रदियल्लाहु तआला अन्हु के भतीजे और हज़रत इमाम हसन के फ़रज़न्दे अरजमन्द हैं। करबला में अपने चचा बुज़ुर्गवार के साथ बहुत से ज़ालिमों को मार कर फ़िन्नार किया फिर ख़ुद शहीद किये गए। बात सिर्फ इतनी है कि हज़रत इमाम हुसैन रदियल्लाहु तआला अन्हु की एक साहबज़ादी से उनकी निस्बत तय हो चुकी थी निक़ाह से पहले ही करबला का सांनेहा दर पेश हो गया। इतनी सी बात को लोगो ने अफ़साना बना दिया और कहा कि करबला में ही उनकी शादी हुई और वो दुल्हा बने उनके मेहन्दी लगी और मेहन्दी कहीं 7 तारीख़ और कहीं 8 तारीख़ और कहीं 13 के मेले तमाशे और ढोल ढमाके बन गई। बांस की खपुच्चीयों और पन्नी व कागज़ से छोटे छोटे खिलौने बनाये जाते हैं और उनका नाम जाहिलों ने मेहन्दी रख दिया और मुसलमानों में से वो लोग जिन का मिजाज़ तमाशाई था उन्होंने अपने ज़ौक़ की चाशनी खेल खेलने और तमाशे व मेले करने के लिए हज़रत इमाम क़ासिम रदियल्लाहु तआला अन्हु की मुबारक शख्सियत को आड़ बना लिया। भाइयों! ये तमाशे कब तक करोगे कुछ मरने के बाद की और आख़िरत की भी फ़िक़्र है। तक़रीरों के ज़रिए ...
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बच्चों को फ़क़ीर बनाना मुसन्निफ़- मौलाना ततहीर अहमद रज़वी बरेलवी कहीं कहीं हज़रत इमाम हुसैन रदियल्लाहु तआला अन्हु के नाम पर बच्चों को फ़क़ीर बनाया जाता है और उनके गले में झोली डाल कर घर घर उनसे भीक मंगवाते हैं ये भी नाजाइज़ व गुनाह है। आला हज़रत अलैहिर्रहमा  फरमाते हैं:- यूँ ही फ़क़ीर बनकर, बिला ज़रूरत व मज़बूरी भीक मांगना हराम है बहुत सी हदीसें उस मअना पर नातिक़ हैं और ऐसों को देना भी हराम है (फतावा रज़विया, जि.24, स.494) (मुहर्रम मे क्या जाइज़ ?क्या नाजाइज़ ? पेज 41)
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इमाम बाड़े मुसन्निफ़ - मौलाना ततहीर अहमद रज़वी बरेलवी जहाँ ताज़िये को रखते हैं इस इमारत को इमाम बाड़ा कहते हैं, ये इमाम बाड़े बनाना और उनकी ताज़ीम करना ये सब राफ़ज़ी फ़िरके की देन है, इमाम बाड़े की कोई शरई हैसियत नहीं, उनकी ज़मीनें किसी बाल बच्चेदार बेघर ग़रीब मुसलमान को दे दी जाएं और उसका सवाब हज़रत इमाम आली मक़ाम की रूह पाक को ईसाल कर दिया जाए तो ये एक इस्लामी काम होगा, या वहां जरूरत हो तो मस्जिद बनादी जाए या मुसलमानों के लिए क़ब्रिस्तान या मुसाफ़िर खाना वगैरह जिससेक़ौम को नफ़अ पहुंचे तो निहायत उम्दा बात है। आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खां फ़ाज़िले बरेलवी अलैहिर्रहमा फरमाते हैं:- "इमाम बाड़ा वक़्फ नहीं हो सकता वो जिसने बनाया वो उसी की मिल्क है जो चाहे करें वो न रहा तो उसके वारिसों की मिल्क है उन्हें इख्तियार है" (फतावा रज़विया, जि.16, स.121) (मुहर्रम मे क्या जाइज़ ?क्या नाजाइज़ ?  41)
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मसनोई और फ़र्ज़ी करबलायें मुसन्निफ़ - मौलाना ततहीर अहमद रज़वी बरेलवी करबला इराक़ में उस जगह का नाम है जहां हज़रत इमाम आली मक़ाम अपने साथियों के साथ यज़ीदी फौजों के हाथ शहीद किये गए थे। अब जहाँ ताज़िये जमा और फिर दफन किये जाते हैं उन जगहों को लोग करबला कहने लगे, मजहबे इस्लाम में इन फ़र्ज़ी करबलाओं की कोई हैसियत नहीं उन्हें मुक़द्दस मक़ाम ख़्याल करके उनका एहतिराम करना सब राफ़ज़ीयत और जिहालत की पैदावार है।आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खां बरेलवी अलैहिर्रहमा फरमाते हैं:- अलम, ताज़िये, मेहंदी, उनकी मन्नत गश्त चढ़ावा, ढोल ताशे, मुजीरे, मरसिये, मातम, मसनोई करबला जाना ये सब बातें हराम व नाजाइज़ व गुनाह हैं। (फतावा रज़विया, जि.24, स.496) कुछ जगहों पर औरतें रात को चिराग़ लेकर करबला जाती हैं, और ख़्याल करती हैं कि जिसका चिराग़ जलता हुआ पहुँच गया उसकी मुराद पूरी हो गई, ये सब जाहिलाना बातें हैं ऐसी वहम परस्ती की इस्लाम में कोई गुंजाइश नहीं है (मुहर्रम मे क्या जाइज़ ?क्या नाजाइज़ ?  40)