मसनोई और फ़र्ज़ी करबलायें

मुसन्निफ़ - मौलाना ततहीर अहमद रज़वी बरेलवी

करबला इराक़ में उस जगह का नाम है जहां हज़रत इमाम आली मक़ाम अपने साथियों के साथ यज़ीदी फौजों के हाथ शहीद किये गए थे। अब जहाँ ताज़िये जमा और फिर दफन किये जाते हैं उन जगहों को लोग करबला कहने लगे, मजहबे इस्लाम में इन फ़र्ज़ी करबलाओं की कोई हैसियत नहीं उन्हें मुक़द्दस मक़ाम ख़्याल करके उनका एहतिराम करना सब राफ़ज़ीयत और जिहालत की पैदावार है।आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खां बरेलवी अलैहिर्रहमा फरमाते हैं:-
अलम, ताज़िये, मेहंदी, उनकी मन्नत गश्त चढ़ावा, ढोल ताशे, मुजीरे, मरसिये, मातम, मसनोई करबला जाना ये सब बातें हराम व नाजाइज़ व गुनाह हैं।
(फतावा रज़विया, जि.24, स.496)

कुछ जगहों पर औरतें रात को चिराग़ लेकर करबला जाती हैं, और ख़्याल करती हैं कि जिसका चिराग़ जलता हुआ पहुँच गया उसकी मुराद पूरी हो गई, ये सब जाहिलाना बातें हैं ऐसी वहम परस्ती की इस्लाम में कोई गुंजाइश नहीं है

(मुहर्रम मे क्या जाइज़ ?क्या नाजाइज़ ?  40)

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