चेहल्लुम का बयान
मुसन्निफ़- मौलाना ततहीर अहमद रज़वी बरेलवी
सफ़र के महीने की 20 तारीख़ को हज़रत सय्येदिना इमाम हुसैन रदियल्लाहु तआला अन्हु के चेहल्लुम ने नाम पर भी ख़ूब मेले ठेले और तमाशे लगाए जाते हैं। ताजिये बना कर बाजो ताशों के साथ घुमाये जाते है।
इस सिलसिले में पहली बात तो ये है कि चेहल्लुम या चालीसवां उन नियाज़ व फ़ातिहा व ईसाले सवाब को कहते हैं जो इंतेक़ाल के चालीसवें दिन या कुछ आगे पीछे किया जाए। लेकिन जिस की शहादत को 1350 सौ साल हो चुकें हों उसका चेहल्लुम अब होना समझ में नहीं आता, उर्स व बरसी तो हर साल होते हैं, लेकिन चालीसवां या चेहल्लुम हरसाल होना तअज़्जुब की बात है, फिर भी चूंकि नियाज़ व फ़ातिहा वगैरह जाइज़ काम हर दिन जाइज़ व हलाल है, 20 सफ़र को भी किए जाएं तो गुनाह नहीं बल्कि सवाब है, लेकिन चेहल्लुम के नाम पर जो भी खुराफातें और तमाशे होते है उनसे इस्लाम मज़हब का दूर का भी वास्ता नहीं है।
बात दर असल ये है कि जब एक मेले और तमाशे से पेट नहीं भरा तो मौज़ व मस्ती और चन्दे करने के लिए एक दिन और बढ़ा लिया, क्योंकि खेल तमाशे ऐसी चीज़ें हैं कि तमाशा पसन्द लोग चाहते हैं कि ये तो रोज़ाना हों तो और भी अच्छा है, और नमाज़ रोज़े वगैरह क़ुरआन की तिलावत में उन्ही का ध्यान लगता है जो ख़ुदा से डरते हैं और आख़िरत व मौत की फिक्र रखते हैं।
खुलासा ये है कि मैं तो इस चेहल्लुम का मतलब यही समझा कि हज़रत इमाम हुसैन की यादगार मनाने का बहाना बनाकर खेल तमाशों ढ़ोल बाजो के लिए एक दिन और बढ़ा लिया गया है। कुछ लोग इस महीने को चेहल्लुम का महीना कहकर मुहर्रम के अलावा इस महीना में भी निकाह और शादी को बुरा जानते हैं हांलाकि ब्याह शादी हर महीने में जाइज़ हैं। मुहर्रम और सफर में भी
(मुहर्रम मे क्या जाइज़ ?क्या नाजाइज़ ? पेज 43)
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