काले और हरे कपड़े पहनना या हरी टोपी ओढ़ना

मुसन्निफ़ - मौलाना ततहीर अहमद रज़वी बरेलवी


 मुह़र्रम में यह हरे काले कपड़े ग़म और सोग मनाने के लिए पहने जाते हैं और सोग इस्लाम में ह़राम है उसके ए़लावा सोग की और बातें भी कुछ राइज हैं,जैसे मुह़र्रम में शुरू के दस दिन कपड़े न बदलना,दिन में रोटी न पकाना,झाड़ू न लगाना,माहे मह़र्रम में ब्याह शादी को बुरा समझना सब फ़ुफ़ुज़ूल बातें और जिहालत व राफ़्ज़ियत की पैदावार खुराफ़ातें हैं।
अ़ालाहज़रत अलैहिर्रहमा फ़रमाते हैं :
 यूँ ही अशरा-ए- मुह़र्रम के सब्ज़(हरे)रंगे हुये कपड़े भी नाजाइज़ हैं यह भी सोग की ग़र्ज से हैं...अशरा मुह़र्रम में तीन रंगों से बचें स्याह(काला)सब्ज़(हरा)सुर्ख ।
(फ़तावा रज़विया 24,स़:496)

 बाज़ जगह अ़शरा मुह़र्रम में सवारियाँ निकाली जाती हैं और उनके साथ त़रह़ त़रह़ के तमाशे और ड्रामे होते हैं वह भी नाजाइज़ व गुनाह हैं। खुदाये  तअ़ाला मुसलमानों को स़ह़ी मअ़ना में इस्लाम को समझने और
उस पर चलने की तौफ़ीक़ अ़त़ा फ़रमाये।

भाइयों! यह दिल है उसको जिस में लगाओगे यह लग जायेगा,गानों,बाजों,मेलों,तमाशों,खुराफ़ातों में लगाओगे तो उसमें लग जायेगा। और उसी दिल को नमाज़ रोज़े और कुरआन की तिलावत में लगाओगे तो उस में लग
जायेगा। अफ़सोस कि तुम ने अपने दिल को मेलो, ठेलों और तमाशों में लगालिया। और मौत क़रीब आ रही है मरने से पहले इस दिल को नमाज़,रोज़े,कुरआन की तिलावत और दीनी किताबों के मुत़ाले वग़ैरा अच्छी बातों में लगा लो।
 कई जगह ऐसा भी हुआ है कि कुछ तअ़ज़ियेदारों की समझ में यह आ गया कि वाक़ई तअ़ज़ियेदारी नाजाइज़ काम है तो वह मौलवियों और इमामों से कहते हैं कि ठीक है हम तअ़ज़िये नहीं बनायेंगे लेकिन जलसा और कांफ्रेन्स कराओ फ़लाँ फ़लाँ मुक़र्रिरों और शाइ़रों को बुलवा दो,तो यह बात भी स़ह़ी नहीं है,किसी ग़लत़ काम से तौबा करने और नेक बनने के लिए कोई शर्त नहीं लगाना चाहिए,पहले आप तअ़ज़ियेदारी से तौबा कीजिए बाज़ रहिए उसके बाद कहिए अब क्या करना है।
 आज कल के बहुत से जलसे भी मेरी नज़र में कोई दीन दारी के काम नहीं रह गये हैं,दोनों त़रफ़ से खालिस़ दुनियादारी बल्कि दुकानदारी बन गये हैं और जलसे हैं कहाँ जलसों के नाम पर ज़्यादा तर मुशाइ़रे हो
रहे हैं और तक़रीरें भी अक्सर वह हैं जिनकी हैसियत शेअ़र व शाइ़री से ज़्यादा नहीं।

मेरा मशवरा तो यह है कि दीन का ज़िम्मे दार ठेकेदार बनने की कोशिश करने के बजाये दीन दार बनने की कोशिश करो,जलसों और तक़रीरों के ज़रीए़े दूसरों की इस़्लाह़ करने की ज़्यादा फ़िक्र न करो,खुद को संभाल और सुधार लो तो एक अ़ाम आदमी के लिए यह भी बहुत काफ़ी है,नमाज़,रोज़े के पाबन्द हो जाओ बुरे
कामों से बचो और अपने काम धन्धे करो।
 दर अस़ल मुसलमानों में काफ़ी लोग वह हैं कि जिन की त़बीअ़तें तमाशा पसन्द हो गई हैं उन्हें हर वक़्त दुन्दखपाड़ और कोहराम चाहिए ऐसे न सही तो ऐसे और इस में न सही तो उस में कुछ लोग जो सच्चे पक्के दीन दार मुसलमान होते हैं उनके लिए नमाज़ रोज़ा कुरआन की तिलावत ज़िक्र व शुक्र हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम पर दुरूद पढ़ना काफ़ी है,इन्हीं सब बातों से उनका दिल बहल जाता है।
 अस़ली मोमिनों की शान तो कुरआन में यह बयान की गई है : बेशक मुराद को पहुँचे ईमान वाले जो नमाज़ में गिड़गिड़ाते हैं और जो बेहुदा बातों की त़रफ़ तवज्जोह नहीं करते और वह जो ज़कात देने का काम करते हैं, और वह जो अपनी शर्मगाहों की ह़िफ़ाज़त करते हैं। और यहीं थोड़ा आगे फ़रमाया जाता है :
और वह जो अपनी अमानतों और अहद का लिह़ाज़ रखते हैं और जो अपनी नमाज़ों की ह़िफ़ाज़त करते हैं यही लोग वारिस हैं जो जन्नतुलफ़िरदौस की
मीरास पायेंगे,और वह उस में हमेशा रहेंगे।  (पारा18,रुकू:1)
 खुदाये तअ़ाला से दुअ़ा है कि वह नमाज़ व तिलावत ज़िक्र व शुक्र और अपने मह़बूब सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम पर दुरूद  व सलाम को हमारे दिल व जान और रुह़ों की ग़िज़ा बना दे और बेहूदा बातों खेल तमाशों से हमारे दिल हटा दे।

(मुहर्रम मे क्या जाइज़ ?क्या नाजाइज़ ?  पेज 44)

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