इमाम क़ासिम की मेहन्दी

मुसन्निफ़- मौलाना ततहीर अहमद रज़वी बरेलवी


हज़रत इमाम क़ासिम, इमाम हुसैन रदियल्लाहु तआला अन्हु के भतीजे और हज़रत इमाम हसन के फ़रज़न्दे अरजमन्द हैं। करबला में अपने चचा बुज़ुर्गवार के साथ बहुत से ज़ालिमों को मार कर फ़िन्नार किया फिर ख़ुद शहीद किये गए। बात सिर्फ इतनी है कि हज़रत इमाम हुसैन रदियल्लाहु तआला अन्हु की एक साहबज़ादी से उनकी निस्बत तय हो चुकी थी निक़ाह से पहले ही करबला का सांनेहा दर पेश हो गया। इतनी सी बात को लोगो ने अफ़साना बना दिया और कहा कि करबला में ही उनकी शादी हुई और वो दुल्हा बने उनके मेहन्दी लगी और मेहन्दी कहीं 7 तारीख़ और कहीं 8 तारीख़ और कहीं 13 के मेले तमाशे और ढोल ढमाके बन गई। बांस की खपुच्चीयों और पन्नी व कागज़ से छोटे छोटे खिलौने बनाये जाते हैं और उनका नाम जाहिलों ने मेहन्दी रख दिया और मुसलमानों में से वो लोग जिन का मिजाज़ तमाशाई था उन्होंने अपने ज़ौक़ की चाशनी खेल खेलने और तमाशे व मेले करने के लिए हज़रत इमाम क़ासिम रदियल्लाहु तआला अन्हु की मुबारक शख्सियत को आड़ बना लिया। भाइयों! ये तमाशे कब तक करोगे कुछ मरने के बाद की और आख़िरत की भी फ़िक़्र है। तक़रीरों के ज़रिए लम्बे लम्बे नज़राने ऐंठने वाले अफ़साना निगार खतीबों को भी रंग भरने का खूब मौक़ा मिला और नई दुल्हन के सामने दुल्हा की शहादत रोने और रुलाने और दहाडे मारने का बहाना बन गई, और शाइरों की मरसिया निगारी ने इस झूंठी बात को कहां से कहाँ तक पहुंचा दिया।
खुलासा ये है कि मेहन्दी की रस्म और उससे मुतअल्लिक वाकिया सब मन गढ़न्त और फुजूलियात से है और उसके नाम पर जो कुछ खुराफातें और जाहिलाना हरक़तें होती हैं ये सब नाजाइज़ व गुनाह व हराम हैं।
आला हज़रत इमामे अहले सुन्नत मौलाना अहमद रज़ा खां फ़ाज़िले बरेलवी अलैहिर्रहमा फरमाते हैं:-
ताज़िया, मेहन्दी, शब आशूरा को रौशनी करना बिदअत व नाजाइज़ है। हज़रत सय्यदिना इमाम क़ासिम रदियल्लाहु तआला अन्हु के साथ करबला में हज़रत सय्यदिना इमाम हुसैन रदियल्लाहु तआला अन्हु की साहबज़ादी की शादी का वाकिया साबित नहीं हैं किसी ने गढ़ा है।
(फतावा रज़विया, जि.24, स.500,501)

(मुहर्रम मे क्या जाइज़ ?क्या नाजाइज़ ? पेज 42)

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