Posts

Showing posts from August, 2019
Image
मुहर्रम में क्या नाजाइज़ है?   तअज़ियेदारी मुसन्निफ़- मौलाना ततहीर अहमद रज़वी बरेलवी आज कल जो ताज़िये बनाये जाते हैं, पहली बात ये हज़रत इमाम आली मक़ाम के रोज़ा का सही नक़्शा नहीं है, अज़ीब अज़ीब तरह के ताज़िये बनाये जाते हैं, फिर उन्हें घुमाया और गश्त कराया जाता है, एक दूसरे से मक़ाबिला किया जाता है, और उस मुक़ाबिले में कभी कभी लड़ाई झगड़े और लाठी डंडे चाकू और छुरी चलाने की नौबत आ जाती है, और ये सब हज़रत इमाम हुसैन की मुहब्बत के नाम पर किया जाता है। अफ़सोस इस मुसलमान को क्या हो गया है और ये कहाँ से चला था और कहां पहुँच गया, कोई समझाये तो मानने को तय्यार नहीं, बल्कि उल्टा समझाने वाले को बुरा भला कहने लगता है। खुलासा ये है कि आज की ताज़िये और इसके साथ होने वाली तमाम बिदआत व खुराफ़ात व वाहियात सब नाजाइज़ व गुनाह है, मसलन मातम करना, ताज़िये पर चढ़ावे चढ़ाना उनके सामने खाना रखकर वहाँ फ़ातिहा पढ़ना, उनसे मन्नत मांगना, उनके नीचे से बरकत हासिल करने के लिए बच्चों को निकालना, ताज़िये देखने कोे जाना, उन्हें झुककर सलाम करना, सवारियाँ निकलना, सब जाहिलाना बातें और नाजाइज़ हरकतें हैं, उनका मज़हबे इस्लाम स...
Image
ज़िक्रे शहादत मुसन्निफ़ - मौलाना ततहीर अहमद रज़वी बरेलवी हज़रत सय्यद इमाम हुसैन रदियल्लाहु तआला अन्हु और दूसरे हज़रात अहले बैअत किराम का ज़िक्र नज़्म में या नस्र में करना और सुनना यक़ीनन जाइज़ है, और बाइसे ख़ैर व बरकत व नुज़ूले रहमत है लेकिन इस सिलसिले में नीचे लिखी हुई बातों को ध्यान में रखना ज़रूरी है। ज़िक्रे शहादत में सही रिवायात और सच्चे वाकियात बयान किये जाए , आज कल कुछ पेशेवर मुक़र्रीरों और शायरों ने अवाम को ख़ुश करने और तक़रीरों को जमाने के लिए अज़ीब अज़ीब किस्से और अनोखी निराली हिकायात और   गढ़ी हुई कहानियां और करामात बयान करना शुरू कर दिया है, क्योकि अवाम को ऐसी बातें सुनने में मज़ा आता है, और आज कल के अक्सर मुक़र्रीरों को अल्लाह عزوجل रसूल ﷺ से ज़्यादा अवाम को खुश करने की फ़िक्र रहती है, और बज़ाहिर सच से झूंठ में मज़ा ज्यादा है और जलसे ज़्यादातर अब मज़ेदारियों के लिए ही हो रहे हैं। आला हज़रत मौलाना शाह अहमद रज़ा रहमतुल्लाहि तआला अलैहि फरमाते हैं:-  शहादत नामे नज़्म या नस्र जो आज कल अवाम में राइज़ है अक्सर रिवायाते बातिला व बे सरोपा से ममलू ...
Image
न्याज़ व फ़ातिहा मुसन्निफ़ - मौलाना ततहीर अहमद रज़वी बरेलवी हज़रत इमाम हुसैन रदियल्लाहु तआला अन्हु और जो लोग उनके साथ शहीद किये गए उनको सवाब पहुंचाने के लिए सदक़ा व ख़ैरात किया जाए, ग़रीबों, मिस्कीनों को या दोस्तों, पड़ोसियों, रिश्तेदारों वगैरह को शर्बत या खिचडे या मलीदे वगैरह कोई भी खाने पीने की चीज़ खिलाई या पिलाई जाए, और उसके साथ आयाते कुरआनिया की तिलावत कर दी जाए तो और भी बेहतर है इस सब को उर्फ़ में नियाज़ फ़ातिहा कहते हैं, ये सब बिला शक जाइज़ और सवाब का काम है, और बुजुर्गों से इज़हारे अक़ीदत व मुहब्बत और उन्हें याद रखने का अच्छा तरीक़ा है लेकिन इस बारे में चंद बातों पर ध्यान रखना ज़रूरी है।  (1) न्याज़ व फ़ातिहा किसी भी हलाल और जाइज़ खाने पीने की चीज़ पर हो सकती है उसके लिए शर्बत, खिचड़े और मलीदे को ज़रूरी ख़्याल करना जिहालत है अलबत्ता इन चीजों पर फ़ातिहा दिलाने में कोई हर्ज़ नहीं है अगर कोई इन मज़कूरा चीज़ों पर फ़ातिहा दिलाता है तो वो कुछ बुरा नहीं करता, हां जो उन्हें ज़रूरी ख्याल करता है उनके एलावा किसी और खाने पीने की चीज़ पर मुहर्रम में फ़ातिहा सही नहीं मानता वो ज़रूर जाहिल है। (2) नियाज़ फ़ाति...
Image
 मुहर्रम में क्या जाइज़?   मुसन्निफ़ - मौलाना ततहीर अहमद रज़वी बरेलवी हम पहले ही लिख चुके हैं कि हज़रत इमाम हुसैन हों या दूसरी अज़ीम इस्लामी शख्सियतें उनसे असली सच्ची हक़ीक़ी मुहब्बत व अक़ीदत तो ये है कि उनके रास्ते पर चला जाए, और उनका रास्ता "इस्लाम" है। पांचों वक़्त की नमाज़ की पाबंदी की जाए, रमज़ान के रोज़े रखे जाएं, माल की ज़कात निकाली जाए, बस की बात हो तो ज़िन्दगी में एक मर्तबा हज भी किया जाए, जुए, शराब, ज़िना, सूद, झूंठ, ग़ीबत फ़िल्मी गानों, तामाशों और पिक्चरों वगैरह नाजाइज़ हराम कामो से बचा जाए, और उसके साथ साथ उनकी मुहब्बत व अक़ीदत में मुन्दरज़ा ज़ैल काम किये जाएं तो कुछ हर्ज़ नहीं बल्कि बाइसे खैर व बरक़त है। (मुहर्रम में क्या जाइज़? क्या नाजाइज़ ? पेज 9)
Image
بسم الله الرحمن الرحيم मु हर्रम में क्या जाइज़ ? क्या नाजाइज़?  मुसन्निफ़ - मौलाना ततहीर अहमद रज़वी बरेलवी  प्यारे इस्लामी भाईयों! मज़हबे इस्लाम में एक अल्लाह की इबादत ज़रूरी है साथ ही साथ उसके नेक बंदों से मुहब्बत व अक़ीदत भी जरूरी है। अल्लाह के नेक अच्छे और मुक़द्दस बंदों से असली, सच्ची और हक़ीक़ी मुहब्बत तो ये है कि उनके ज़रिए अल्लाह ने जो रास्ता दिखाया है उस पर चला जाए, उनका कहना माना जाए, अपनी ज़िंदगी को उनकी ज़िंदगी की तरह बनाने की कोशिश की जाए, इसके साथ साथ इस्लाम के दायरे में रहकर उनकी याद मनाना, उनका ज़िक़्र और चर्चा करना, उनकी यादगारें क़ाइम करना भी मुहब्बत व अक़ीदत है। और अल्लाह के जितने भी नेक और बरगुज़ीदा बंदे है उन सब के सरदार उसके आखिरी रसूल हज़रत मुहम्मद सलल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम हैं। उनका मर्तबा इतना बड़ा है कि वो अल्लाह के रसूल होने के साथ साथ उसके महबूब भी है। और जिस को दीन व दुनियां में जो कुछ भी अल्लाह ने दिया, देता है, और देगा, सब उन्हीं का ज़रीया, वसीला और सदक़ा है। उनका जब विसाल हुआ, और जब दुनियां से तशरीफ़ ले गए तो उन्होंने अपने क़रीबी दो तरह के लोग छोड़े थे। ...