न्याज़ व फ़ातिहा

मुसन्निफ़ - मौलाना ततहीर अहमद रज़वी बरेलवी

हज़रत इमाम हुसैन रदियल्लाहु तआला अन्हु और जो लोग उनके साथ शहीद किये गए उनको सवाब पहुंचाने के लिए सदक़ा व ख़ैरात किया जाए, ग़रीबों, मिस्कीनों को या दोस्तों, पड़ोसियों, रिश्तेदारों वगैरह को शर्बत या खिचडे या मलीदे वगैरह कोई भी खाने पीने की चीज़ खिलाई या पिलाई जाए, और उसके साथ आयाते कुरआनिया की तिलावत कर दी जाए तो और भी बेहतर है इस सब को उर्फ़ में नियाज़ फ़ातिहा कहते हैं, ये सब बिला शक जाइज़ और सवाब का काम है, और बुजुर्गों से इज़हारे अक़ीदत व मुहब्बत और उन्हें याद रखने का अच्छा तरीक़ा है लेकिन इस बारे में चंद बातों पर ध्यान रखना ज़रूरी है।
 (1) न्याज़ व फ़ातिहा किसी भी हलाल और जाइज़ खाने पीने की चीज़ पर हो सकती है उसके लिए शर्बत, खिचड़े और मलीदे को ज़रूरी ख़्याल करना जिहालत है अलबत्ता इन चीजों पर फ़ातिहा दिलाने में कोई हर्ज़ नहीं है अगर कोई इन मज़कूरा चीज़ों पर फ़ातिहा दिलाता है तो वो कुछ बुरा नहीं करता, हां जो उन्हें ज़रूरी ख्याल करता है उनके एलावा किसी और खाने पीने की चीज़ पर मुहर्रम में फ़ातिहा सही नहीं मानता वो ज़रूर जाहिल है।
(2) नियाज़ फ़ातिहा में शेख़ी ख़ोरी नहीं होना चाहिए और न खाने पीने की चीज़ों मे एक दूसरे से मुक़ाबला। बल्कि जो कुछ भी हो और जितना भी हो सब सिर्फ़ अल्लाह वालों के ज़रिए अल्लाह तआला की नज़दीकी और उसका कुर्ब और रज़ा हासिल करने के लिए हो, और अल्लाह तआला के नेक बंदों से मुहब्बत इस लिए की जाती है कि उनसे  मुहब्बत करने और उनके नाम पर खाने खिलाने और उनकी रूहों को अच्छे कामों का सवाब पहुँचाने से अल्लाह तआला राज़ी हो, और अल्लाह तआला को राजी करना ही हर मुसलमान की जिंदगी का असली मक़सद है।
(3) नियाज़ फ़ातिहा बुज़ुर्गों की हो या बडे बूढो की उस के तौर तऱीके जो मुसलमानो में राइज़ हैं जाइज़ और अच्छे काम हैं फ़र्ज़ और वाज़िब यानी शरअन लाज़िम व ज़रूरी नहीं अगर कोई करता है तो अच्छा करता है और नहीं करता है तब भी गुनेहगार नहीं, हां कभी भी बिल्कुल न करना महरूमी है। नियाज़ व फ़ातिहा को न करने वाला गुनेहगार नहीं है, हां इससे रोकने और मना करने वाला जरूर गुमराह व बद मज़हब है और बुजुर्गों के नाम से जलने वाला है।
(4) नियाज़ व फ़ातिहा के लिए बाल बच्चों को तंग करने की या किसी को परेशान करने की या ख़ुद परेशान होने की या उन कामों के लिए कर्ज़ा लेने की या ग़रीबों, मज़दूरों से चंदा करने की कोई ज़रूरत नहीं, जैसा और जितना मौक़ा हो उतना करें और कुछ भी न हो तो ख़ाली क़ुरआन या कलमा ए तय्यब या दुरुद शऱीफ वगैरह का ज़िक्र करके या नाफ़िल नमाज़ या रोज़े रखकर सवाब पहुंचा दिया जाए तो ये भी काफी है, और मुकम्मल नियाज़ और पूरी फ़ातिहा है, जिस में कोई कमी यानी शरअन ख़ामी नहीं है। ख़ुदा ए तआला ने इस्लाम के ज़रिए बंदों पर उनकी ताक़त से ज़्यादा बोझ नहीं डाला। ज़कात हो या सदक़ा ए फित्र और क़ुर्बानी सिर्फ उन्हीं पर फ़र्ज़ व वाज़िब हैं जो साहिबे निसाब यानी शरअन मालदार हों। हज भी उसी पर फ़र्ज़ किया गया जिस के बस की बात हो, अक़ीक़ा व वलीमा उन्हीं के लिए सुन्नत है जिनका मौक़ा हो जब कि ये काम फ़र्ज़ व वाज़िब या सुन्नत हैं, और नियाज़ व फ़ातिहा उर्स वगैरह तो सिर्फ बिदआते हसना यानी सिर्फ अच्छे और मुस्तहब काम हैं, फ़र्ज़ व वाज़िब नहीं हैं यानी शरअन लाज़िम व जरूरी नहीं हैं। फिर नियाज़ व फ़ातिहा के लिए क़र्ज़ लेने, परेशान होने और बाल बच्चों को तंग करने की क्या जरूरत है बल्कि हलाल कमाई से अपने बच्चों की परवरिश करना बजाते ख़ुद एक बड़ा कारे ख़ैर सवाब का काम है ।
खुलासा ये है कि उर्स, नियाज़ व फ़ातिहा वगैरह बुज़ुर्गों की यादगारें मनाने की जो लोग मुख़ालिफत करते हैं वो गलती पर हैं और जो लोग सिर्फ उन कामों को ही इस्लाम समझे हुए हैं और शरअन उन्हें लाज़िम व जरूरी ख्याल समझते हैं वो भी बड़ी भूल में हैं।
(5) नियाज़ व फ़ातिहा की हो या कोई और खाने पीने की चीज़ उसको लुटाना, भीड़ में फेंकना कि उनकी बे अदबी हो पैरों के नीचे आये या नाली वगैरह गंदी जगहों पर गिरें एक गलत तरीक़ा है, जिससे बचना जरूरी है जैसा कि मुहर्रम के दिनों में कुछ लोग पूड़ी, गुलगुले, बिस्किट वगैरह छतों से फेंकते और लुटाते हैं ये ना मुनासिब हरकतें हैं।
(6) नियाज़ व फ़ातिहा यानी बुजर्गों को उनके विसाल के बाद या आम मुरदों की रूहों को उनके मरने के बाद सवाब पहुचांने का मतलब सिर्फ यही नहीं कि खाना पीना सामने रखकर और क़ुरआन करीम पढ़कर ईसाले सवाब कर दिया जाए, बल्कि दूसरे दीनी इस्लामी या रिफाहे आम यानी अवाम मुसलिमीन को नफा पहुंचाने वाले काम कर के उनका सवाब भी पहुँचाया जा सकता है।
किसी ग़रीब बीमार का ईलाज करा देना। किसी बाल बच्चेदार बेघर मुसलमान का घर बनबा देना।किसी बे क़सूर क़ैदी की मदद करके जेल से रिहाई दिलाना। जहां मस्जिद की ज़रूरत हो वहाँ मस्जिद बनवा देना। अपनी तरफ से इमाम व मुअज़्ज़िन की तनख्वाह जारी कर देना। मस्जिद में नमाज़ियों की ज़रूरत में ख़र्च करना। इल्मे दींन हासिल करने वालों या इल्म फैलाने वालों की मदद करना। दीनी किताबें छपवा कर या ख़रीदकर तकसीम कराना। दीनी मदरसे चलना। रास्ते और सड़के बनवाना या उन्हें सही कराना। रास्तों में राहगीरों की ज़रूरतो के काम कराना वगैरह वगैरह।
ये सब ऐसे काम हैं कि उन्हें करके या उनपर ख़र्चा करके, बुज़ुर्गों या बड़े बूढ़ों के लिए ईसाले सवाब की नियत कर ली जाए तो ये भी एक किस्म की बेहतरीन नियाज़ व फ़ातिहा है, ज़िन्दों और मुरदों सभी का उसमे नफा और फायदा है।
हदीस पाक में है कि हुज़ूर पाक के एक सहाबी हज़रते साअद इब्ने उबादा रदिअल्लाहु तआला अन्हु की माँ का विसाल हुआ तो वो बारगाहे रिसालत में हाज़िर हुए और अर्ज़ किया :- या रसूलल्लाह! (सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम) मेरी माँ का इंतेक़ाल हो गया है तो कौनसा सदक़ा बेहतर रहेगा। सरकार सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम  ने फरमाया: पानी बेहतर रहेगा। उन्होंने एक कुआँ खुदवा दिया और उसके करीब खड़े होकर कहा :- ये कुआँ मेरी माँ के लिए है, (मिश्कात बाबो फ़ज़लुस्सदक़ा स. 169) यानी जो इस से पानी पिये उसका सवाब मेरी माँ को पहुँचता रहे।
शारेहीने हदीस फरमाते हैं:- हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने पानी इसलिए फरमाया कि मदीना तय्यबा में पानी की किल्लत थी पीने का पानी खरीदना पड़ता था, गरीबों के लिए दिक्कत का सामना था इसलिए हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने हज़रत सअद रदियल्लाहु तआला अन्हु से कुआँ खोदने के लिए फरमाया।
इस हदीस से ये बात साफ हो जाती है कि मुरदों को कारेखैर का सवाब पहुँचता है और ये कि जिस चीज़ का सवाब पहुंचाना हो उस खाने पीने की चीज़ को सामने रखकर ये कहने में कोई हर्ज़ नहीं कि उसका सवाब फलां को पहुंचे, क्योकि हज़रत सअद रदियल्लाहु तआला अन्हु ने कुआँ खुदवा कर कुआँ की तरफ इशारा करके, ये, ये अल्फ़ाज़ कहे थे, लेकिन इससे ज़रूरी भी नहीं समझना चाहिए कि खाना पानी सामने रखकर ही ईसाले सवाब जाइज़ है, दूर से भी कह सकते हैं, दिल में कोई नेक काम करके या कुछ पढ़कर या खिलाकर किसी को सवाब पहुंचाने की नियत करलें तब भी काफ़ी है। अल्लाह तआला सवाब देने वाला है वो दिलों के अहवाल से ख़ूब वाकिफ़ है। ये सब तऱीके दुरुस्त हैं उन में से जो किसी तऱीके को गलत कहे वही ख़ुद गलत है।
(मुहर्रम में क्या जाइज़ ? क्या नाजाइज़? पेज 9)

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