मुहर्रम में क्या जाइज़? 

मुसन्निफ़ - मौलाना ततहीर अहमद रज़वी बरेलवी

हम पहले ही लिख चुके हैं कि हज़रत इमाम हुसैन हों या दूसरी अज़ीम इस्लामी शख्सियतें उनसे असली सच्ची हक़ीक़ी मुहब्बत व अक़ीदत तो ये है कि उनके रास्ते पर चला जाए, और उनका रास्ता "इस्लाम" है। पांचों वक़्त की नमाज़ की पाबंदी की जाए, रमज़ान के रोज़े रखे जाएं, माल की ज़कात निकाली जाए, बस की बात हो तो ज़िन्दगी में एक मर्तबा हज भी किया जाए, जुए, शराब, ज़िना, सूद, झूंठ, ग़ीबत फ़िल्मी गानों, तामाशों और पिक्चरों वगैरह नाजाइज़ हराम कामो से बचा जाए, और उसके साथ साथ उनकी मुहब्बत व अक़ीदत में मुन्दरज़ा ज़ैल काम किये जाएं तो कुछ हर्ज़ नहीं बल्कि बाइसे खैर व बरक़त है।

(मुहर्रम में क्या जाइज़? क्या नाजाइज़ ? पेज 9)

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